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1857 से पहले ही सागर ने सत्ता से उखाड़ फेंका था अंग्रेजी हुकूमत को।

1857 से पहले ही सागर ने सत्ता से उखाड़ फेंका था अंग्रेजी हुकूमत को।

सागर, नरसिंहपुर, दमोह, ललितपुर, जबलपुर के साथ मध्यप्रदेश की कई रियासतों से जो चिंगारी उठी उसने अंग्रेजों के आदेश मानने से इनकार कर दिया था। जिसके बाद हुए संघर्ष में अंग्रेज़ी साम्राज्य की नींव तक कांप उठी। क्योंकि इस विद्रोह  कई महीनों तक सागर, दमोह, नरसिंहपुर में अंग्रेजी शासन की जड़ें उखड़ गईं थीं।

संघर्ष की कहानी

 

पूरा संघर्ष

नर्मदाघाटी और बुंदेलखंड के विद्रोह का अपना एक अलग इतिहास है। जिसका उल्लेख विलियम डेलरिपल की किताब द लास्ट मुग़ल द लॉस्ट ऑफ आ डायनेस्टी में मिलता है जिसे 1857 में पेंग्विन प्रकाशन दिल्ली ने प्रकाशित किया है। इसके अलावा विस्तार से द्वारका प्रासाद मिश्र की सन 2002 में आई पुस्तक मध्यप्रदेश में स्तंत्रता आंदोलन का इतिहास में उल्लेख किया गया है। प्रथम स्वाधीनता संग्राम के 15 साल पहले ही अंग्रेजों से जबरदस्त मोर्चा लिया था। वह संघर्ष 1842- 43 के ‘‘बुन्देला विद्रोह’’ के नाम से पर इतिहास में प्रसिद्ध है वह आगर में नरहट के मधुकरशाह और गणेश जू व चंद्रपुर के राजा ने विद्रोह कर दिया।

बुन्देला-विद्रोह सम्पूर्ण सागर जिले के साथ नरसिंहपुर, दमोह, जबलपुर, होशंगाबादश चंदेरी आदि में फैल गया। आगर और नरसिंह पुर में अंग्रेज़ों के विरूद्ध भीषण संघर्ष हुए । विपुल सेना के सामने बुन्देलों का विद्रोह सफल न हो सका । मधुकर शाह पकड़ लिये गये। उन्हें सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटका दिया गया और उनके शव को सागर जेल के पीछे जला दिया गया। सागर में आज भी सागर जेल में उनका समाधि स्थल है। साथ ही गोपाल गंज में वृहद पार्क व एक वार्ड का नाम भी मधुकर शाह के नाम पर है।

अमिताभ बच्चन और गोविंद नामदेव

अमिताभ ने किया विमोचन

महज़ 21 साल की आयु में देश के लिए बलिदान होने वाले मधुकरशाह पर सागर के अभिनेता गोविंद नामदेव ने एक किताब भी लिखी है। जिसका विमोचन खुद महानायक अमिताभ बच्चन ने 2018 में किया।

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