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श्रेष्ठ वस्तु सहजता से प्राप्त हो जाये तो उस्केनप्रति आदर और उसका महत्व नहीं रह जाता – पं इंद्रेश जी महाराज

श्रेष्ठ वस्तु सहजता से प्राप्त हो जाये तो उसके प्रति आदर और उसका महत्व नहीं रह जाता – पं इंद्रेश जी महाराज

सागर। बालाजी मंदिर के गिरिराज स्वरूप गिरी पर हो रही श्रीमद्भागवत कथा का विश्राम बुधवार को हुआ। कथा व्यास पं इंद्रेश जी महाराज ने सात दिवस की कथा का निचोड़ सार में प्रस्तुत किया। उन्होंने सागर शहर के आकर्षण सौंदर्य और यहां के मंदिरों की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि इन सात दिनों में ऐसा लगा जैसे वृंदावन में ही रहा हूँ। उन्होंने कहा कि भगवान को मित्र बना लिया तो भागवत प्राप्ति हो गई समझो। नवादा भक्ति में एक भक्ति है साख्य भक्ति साख्य भाव। साख्य भाव रखने के लिए जितेंद्रीय, विरक्त इंद्रिय और प्रशांत आत्मा इन तीन गुणोंका होना जरूरी है। जब तक यह तीन गुण नहीं आते तब तक ठाकुर जी भक्त को सखा नहीं मानते। हर संबंध टौ हम एकतरफा निभा सकते हैं लेकिन साख बनाना टौ ठाकुर जी की इच्छा पर निर्भर है। इसलिए साखयभाव प्रमुख है। जितेंद्रीय और विरक्त इंद्रीय होने के इंद्रियों को भागवत विमुख वस्तु विषयों से विमुक्त होना है। यदि यह त्याग नहीं आ रहा तो केवन प्रशांत आत्मा गन आजाये तो तीनों गन मिल जाते हैं। ना सुख में सुखी न दुख में दुखी शांत चित्त होकर इसकी विशालता का चिन्मय स्वरूप प्रशान्त आत्मा होना है। मौन इसकी प्रारम्भिकता है। उन्होंने कहा कि दुख तीन कारणों से मिलता है। काल, कर्म और स्वभाव से काल से मिला दुख प्रारब्ध है तो कर्म के कारण मिला दुख परिस्थिति जन्य भी हो सकता है लेकिन स्वभाव से प्राप्त दुख पाप की श्रेणी में आता है। परिस्थिति वाश कई लोग अपराध कर देते हैं जो जेलों में बंद हैं कभी बंदियों से उनके प्रति हीं भावना रखे बिना मिलेंगे तो जान सकेंगे। कथा में संक्षिप्त रूप से भगवान के  विवाहों, अश्वमेघ यज्ञ, सुदामा चरित्र कथा की इसके बाद यदु वंश की समाप्ति की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि ठाकुर जी जिन्हें सम्बन्धियोंनके रूप में मिले उनकी तब यही अवस्था थी जैसे श्रेष्ठता सहजता से मिल जाने पर उसका महत्व नहीं रह जाता। कोई भी हो भाव के बिना अपना नहीं होता। उन्होंने युवाओं को संदेश दिया कि धनवान होना, रूपवान होना, युवा अवस्था मे ख्याति और सफलता का मिल जाना और सत्संग का न होना पतन का कारण बनता है। यदि भगवान ने दिया है तो सत्संग जरूर करें। कथा से प्रेम करेंगे टौ ठाकुर जी मिलेंगी ही क्योंकि ठाकुरजी कहीं नहीं गए वह कथा में वास करते हैं।

 

भारत तब श्रेष्ठ होगा जब यहां एक भी वृद्धाश्रम न रहे।

सुनने में वृद्धाश्रम शब्द सहज है लेकिन चिंतन करेंगे तब समझेंगे की वृद्धाश्रम का होना माता पिता के प्रति प्रेम न होना है। जिस दिन इस देश से वृद्धाश्रम खत्म हो जाएंगे तभी एक श्रेष्ठ राष्ट्र का निर्माण होगा। माता पिता की सेवा से ठाकुर जी रीझ जाते हैं और विट्ठल बनकर अपने भक्त की प्रतीक्षा करते हैं। इसलिए हमेशा माता पिता की प्रसन्नता का कार्य करें ऐसा कोई कार्य न करें जिससे कि माता पिता को कष्ट हो।

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