सागर। धर्म और परंधर्म को समझकर ही हरिपरम को प्राप्त किया जा सकता है। पहले धर्म को समझिए जीवन यापन के लिए इस लोक में रहने के लिए आप जो कर्म कर रहे हैं वह धर्म है। इसमें भोजन भी धर्म है, हम क्या खाएं कब खाएं कैसे खाएं इसका ध्यान रखना है। भोजन मुख से लगने के बाद वापस थाली में नहीं आना चाहिए। ऐसे ही भवन भी ऐसा होना चाहिए जिसमें पक्षियों, पशुओं, संतों और भगवान का स्थान हो। भ्रमण का भी नियम है हम कहाँ जाएं तीर्थों पर या व्यसन भोगने के स्थान पर जाएं। ऐसे ही भाषा का दुरुपयोग हो है जिससे भाषा मजाक बन जाता है। भाषा की शुद्धता और पवित्रता रखना भी धर्म है।कुटुम्भ प्रबोधन करना धर्म है। इसके बाद पर्यावरण संरक्षण करना भी धर्म है। हम देह तो शुद्ध रखते हैं लेकिन पर्यावरण को शुद्ध नहीं रखते। सामाजिक समरसता, स्वजागरण, नागरिकता व्यवस्था के नियमों का पालन भी धर्म है। लेकिन परम धर्म है कि जो समय मिले उसमें भक्ति करना कथा सुनने ताकि भगवान के परमधाम को प्राप्त किया जा सके। यह परम धर्म है। यह बात पं इंद्रेश जी महाराज ने बालाजी मंदिर परिसर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन कही। उन्होंने कहा कि भगवत प्राप्ति के लिए ईर्ष्या सबसे बड़ी बाधा है। कोई भी दोष हो भागवत प्राप्ति हो जाएगी लेकिन ईर्ष्या दोष है तो कभी भगवत्प्राप्ति नहीं हो सकती।

कौन हैं भगवान
भगवान वह हैं जिनके छः भग हों जिनको 6 बातें पता हैं वही भगवान हैं। उत्पत्ति, प्रलय, गति और दुर्गति (अगति) भगवान जानते हैं, विद्या और अविद्या यानी ज्ञान और अज्ञान को वह जानते हैं। उनके अतिरिक्त कोई नही जानता इसलिए उन्हें भगवान कहते हैं। पंचबतत्व जिनके अधीन हैं। वेदों के अनुसार संसार मिथ्या है यह संसार जिसकी लीला है वह परमात्मा हैं। सत्यम। परम धीमहि जो परम सत्य है में उसको प्रणाम करता हूँ। उन्होंने कथा का विषय अधिकारी संबंध और प्रयोजन भी बताया है। कथा में काशी के भागवत पाठी ब्राम्हण और काले खान की भावुक कथा सुनाई।
दक्षिणा में मांगा गोपीगीत का पाठ
उन्होंने कहा कि कथा में दक्षिणा में सभी भक्तों से सगोपीगीत का पाठ नित्य करने को कहा साथ ही किसी एक ग्रंथ का अध्ययन और उसे धारण करने का उपदेश दिया।उन्होंने कहा कि आपने भोग भोगकर, रोग रोगकर और योग योगकर देख लिये। अब समझिए कि भागवत का प्रारंभ ज शब्द से होता है। जो कष्ट का प्रतीक है निश्चित ही हम पीड़ित हैं यदि पीड़ित नहीं होते तो वैकुंठ में होते हमारा जन्म ही नहीं होता। इसलिए काम करते चलो नाम जपते चलो कहते हुए कृष्ण दास अधिकारी ने गाया “मेरे तो गिरधर ही गुणगान” मधुर भजन का गायन किया।
वृंदावन से की सागर की तुलना
कथा स्थल को गोवर्धन पर्वत तो दोनों सरोवरों को राधा और कृष्ण सरोवर की उपमा देते हुए उन्होंने कहा कि यदि में भाव की बात करूं तो सागर को वृंदावन साबित कर दूंगा। गिरिराज जी भक्तोँ की माला पहनते हैं ऐसे ही शहर नीचे है और हम इस गिरी पर कथा कह रहे हैं। गिरिराज जी की तरह ही यहां आप सभी पुण्यात्माएं भक्त जन पहुंचे हैं। यह साधारण बात नहीं है।

