सागर। कुम्भ उस घट को कहते हैं जो रस को धारण करता है। जहां जहां अमृत की बूंदें पड़ीं वहां वहां कुंभ होता है। 12 साल में कुंभ एक बार आता है लेकिन भागवत कथा का प्रभाव ऐसा है जो करोड़ों कुम्भों के बराबर है। सातों दिन कथा सुनने से निश्चित ही वह लाभ मिलता है। भक्ति रस को धारण करने वाली ठाकुर जी की कुम्भ रूपी कथा सुनने रसिक पहुंचते हैं। भागवत कथा कोटि कोटि कुम्भों के समान है। जिन तिथियों में महाकुंभ के समय में यह कथा हो रही है वह अद्भुत संयोग है। तीर्थों के राजा प्रयाग राज हैं, तीर्थों के गुरू पुष्कर हैं और तीर्थों के मुख्यमंत्री काशी विश्वनाथ हैं। जब एक बार प्रयागराज ने कहा कि कुंभ में सारे तीर्थ पहुंचते हैं तो वृंदावन क्यों नहीं पहुंचता तो वृंदावन ने कहा कि मैं तीर्थ नहीं ठाकुरजी का घर हूँ। मैं ठाकुर जी की कथा में हमेशा रहता हूँ। ठाकुर जी के घर से बड़ा कौन तीर्थ होगा। ठाकुर जी की कथा में वृंदावन धाम साक्षात उपस्थित होते हैं। इन पावन तिथियों में सागर में यह कथा हो रही है जो आप सभी के पुण्यों का प्रभाव है। यह बात पं इंद्रेश जी महाराज ने बालाजी मंदिर क्षेत्र में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के पहले दिन कही। उन्होंने कहा कि भक्ति के दो पुत्र हैं ज्ञान और वैराग्य जिनके बिना भक्ति का होना असंभव है। कलयुग के प्रभाव से दोनों रुग्ण हैं। ज्ञान को जानने का तोग है जबकि ज्ञान का अर्थ जानना नहीं है। ज्ञान का अर्थ है निर्णय लेने की क्षमता होना। तो वहीं वैराग्य त्याग है कलयुग के प्रभाव से आसक्ति होती है इससे मुक्ति का उपाय है। भगवान से जुड़ना, जब भगवान से चेतना जुड़ जाती है तो त्याग स्वतः ही हो जाता है। उन्होंने सुख और आनंद में अंतर बताते हुए कहा कि आप एक मुद्रा में बैठकर कथा सुन रहे हैं। कई घंटे बैठने के बाद भी कोई पीड़ा नहीं होगी। क्योंकि आपकी चेतना ठाकुर जी से जुड़ी है। यह आनंद की स्थिति है इस स्थिति में सुख दुख का अनुभव नहीं होता। ऐसा नहीं है कि भक्ति मार्ग पर कष्ट नहीं होते, कष्ट तो होते हैं लेकिन उनका अनुभव नहीं होता। जो वृंदावन से जुड़ जाता है वो चाहे न चाहे अपने आप ही उससे सारा संसार छूट जाता है। कथा में ठाकुर जी के भजनों पर श्रद्धालु भाव विभोर होकर नाचे शुक्रवार को कथा 3 से 6 बजे तक होगी।

आज भी याद है सागर का अद्भुत सौंदर्य
पिछले दिनों मैं जब सागर पहुंचा था तब इस शहर का सौंदर्य देखता रह गया था। यहां के सुंदर घाट और मंदिर अद्भुत नज़ारा मैं नहीं भूल पाया। कई शहरों में जाना होता है उतना याद नहीं रख पाता लेकिन सागर का सौंदर्य नहीं भूल पाया। तब लगा था कि यहां के व्यवस्थापक जरूर ही अच्छी सोच रखते हैं।
रसिकों की तरह सुनने पहुंचें कथा
उन्होंने कहा कि कथा का पहला दिन है और लग रहा है कि कथा पांचवे दिन की है। आप रोज रसिकों की तरह बन संवर कर प्रतिदिन ठाकुर जी की कथा सुनने आएं। यहां सत्य और चेतन आनंद का अनुभव करें बुंदेलखंड के वृंदावन से पुराना नाता है। हरिराम व्यास जी की के बंदों को आज भी हम गाते हैं। पाना के जुगलकिशोर जी भी उसी वृंदावन से हैं।

